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पहाड़ी स्त्रियां

कविताएं कहां कह पाएंगी

पहाड़ों पर बसी

स्त्रियों की अनुपम गाथाएं।

शब्द कहां बन पाएंगे पर्याय

जो उनकी कठोर जीवन शैली को लिख पाए।


पहाड़ों पर स्त्री

जीवन भर उकेरती है

अपने कोमल हृदय पर

पहाड़ों की अनगिनत विषमताएं।

साहित्य की कोई भी विधा

कहां समझा पाएंगी

कि वो कैसे उगाती है

शीत ऊसर धरा पर सेब बागान।

वो मुस्कुराकर

कैसे लादती है अपनी पीठ पर

आजीवन धूप की पराबैंगनी किरणें।

वो पसीने की बूंदों से

पहाड़ों की तलहटी में

कैसे उगाती है फल-फसल।


नि:शब्द कर देती हैं आगंतुकों को

पहाड़ की स्त्रियों की अद्भुत आवभगत!

विश्व के हर रत्नजड़ित ताज फीके पड़ जाते हैं

जब वो हृदय से स्वागत में पहनाती है उन्हें

किन्नौरी टोपी।

वो अन्नपूर्णा बन

परोसती है पथिकों को

अनन्य पहाड़ी भोजन।

वो सुगम बनाती है

पहाड़ों की हर कठिनतम यात्रा

अपनी मुस्कान से।

वो संघर्षशील पहाड़ों की स्त्रियां होती है

स्वयं पहाड़ सी

जिसके सानिध्य में फलता-फूलता है

यहां का नैसर्गिक सौंदर्य।


कविताएं कहां कुछ कह पाएंगी

वो पहाड़ों पर बसी

स्त्रियों की अद्भुत जीवन गाथाएं।



Art by Tanisha Negi


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